حديث رقم 2987 - من كتاب صحيح مسلم - كِتَابُ الْبُيُوعِ

نص الحديث

2987 حَدَّثَنَا إِسْحَاقُ ، أَخْبَرَنَا عِيسَى بْنُ يُونُسَ ، حَدَّثَنَا الْأَوْزَاعِيُّ ، عَنْ رَبِيعَةَ بْنِ أَبِي عَبْدِ الرَّحْمَنِ ، حَدَّثَنِي حَنْظَلَةُ بْنُ قَيْسٍ الْأَنْصَارِيُّ ، قَالَ : سَأَلْتُ رَافِعَ بْنَ خَدِيجٍ عَنْ كِرَاءِ الْأَرْضِ بِالذَّهَبِ وَالْوَرِقِ ، فَقَالَ : لَا بَأْسَ بِهِ ، إِنَّمَا كَانَ النَّاسُ يُؤَاجِرُونَ عَلَى عَهْدِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَلَى الْمَاذِيَانَاتِ ، وَأَقْبَالِ الْجَدَاوِلِ ، وَأَشْيَاءَ مِنَ الزَّرْعِ ، فَيَهْلِكُ هَذَا ، وَيَسْلَمُ هَذَا ، وَيَسْلَمُ هَذَا ، وَيَهْلِكُ هَذَا ، فَلَمْ يَكُنْ لِلنَّاسِ كِرَاءٌ إِلَّا هَذَا ، فَلِذَلِكَ زُجِرَ عَنْهُ ، فَأَمَّا شَيْءٌ مَعْلُومٌ مَضْمُونٌ ، فَلَا بَأْسَ بِهِ *

اختر أحد أحاديث التخريج لعرضه هنا

اختر طريقة التخريج المناسبة لك :
التخريج
اخرجه البخاري في صحيحه ( 37/1404 برقم 2192 و 41/1433 برقم 2230 و 54/1671 برقم 2600 ) ومسلم في صحيحه ( 28/661 برقم 2978 و 28/661 برقم 2980 و 28/661 برقم 2981 و 28/663 برقم 2986 و 28/663 برقم 2988 ) وأبو داود في سننه ( 17/952 برقم 2996 و 17/952 برقم 2997 و 17/953 برقم 3001 و 17/953 برقم 3003 و 17/953 برقم 3004 و 17/953 برقم 3005 و 17/958 برقم 3019 ) والترمذي في جامعه ( 15/946 برقم 1368 ) والنسائي في الصغرى ( 36/1860 برقم 3844 و 36/1860 برقم 3845 و 36/1860 برقم 3846 و 36/1860 برقم 3847 و 36/1860 برقم 3848 و 36/1860 برقم 3849 و 36/1860 برقم 3850 و 36/1860 برقم 3852 و 36/1860 برقم 3853 و 36/1860 برقم 3867 و 36/1860 برقم 3868 و 36/1860 برقم 3869 و 36/1860 برقم 3871 و 36/1860 برقم 3877 و 36/1860 برقم 3880 و 36/1860 برقم 3881 و 36/1860 برقم 3882 و 36/1860 برقم 3883 و 36/1860 برقم 3884 و 37/1643 برقم 3886 و 36/1860 برقم 3887 و 36/1860 برقم 3891 و 36/1860 برقم 3892 و 36/1860 برقم 3893 و 36/1860 برقم 3894 و 36/1860 برقم 3896 و 36/1860 برقم 3897 و 36/1860 برقم 3902 و 36/1860 برقم 3906 و 45/2068 برقم 4505 ) وابن ماجه في سننه ( 13/667 برقم 2277 و 17/750 برقم 2461 و 17/751 برقم 2465 و 17/752 برقم 2470 و 17/753 برقم 2472 ) وأحمد في المسند ( 20/161 برقم 15564 و 20/161 برقم 15569 و 20/161 برقم 15572 و 20/161 برقم 15578 و 20/161 برقم 15579 و 20/161 برقم 15586 و 20/161 برقم 15587 و 20/161 برقم 15591 و 22/463 برقم 16990 و 22/463 برقم 16996 و 23/705 برقم 18684 ) ومالك في الموطأ ( 36/421 برقم 1400 ) وابن حبان في صحيحه ( 62/585 برقم 5285 و 62/587 برقم 5287 و 62/588 برقم 5288 و 62/589 برقم 5289 ) والحاكم في المستدرك ( 19/129 برقم 2237 ) والنسائي في الكبرى ( 32/1391 برقم 3500 و 32/1391 برقم 3501 و 32/1391 برقم 3502 و 32/1391 برقم 3503 و 32/1391 برقم 3504 و 32/1391 برقم 3505 و 32/1391 برقم 3506 و 32/1391 برقم 3508 و 32/1391 برقم 3509 و 32/1391 برقم 3523 و 32/1391 برقم 3524 و 32/1391 برقم 3525 و 32/1391 برقم 3527 و 32/1391 برقم 3533 و 32/1391 برقم 3536 و 32/1391 برقم 3537 و 32/1391 برقم 3538 و 32/1391 برقم 3539 و 32/1391 برقم 3540 و 32/1391 برقم 3545 و 32/1391 برقم 3549 و 32/1391 برقم 3550 و 32/1391 برقم 3551 و 32/1391 برقم 3552 و 32/1391 برقم 3553 و 32/1391 برقم 3554 و 32/1391 برقم 3555 و 32/1391 برقم 3557 و 32/1391 برقم 3561 و 32/1391 برقم 3565 و 48/1887 برقم 4991 ) والطيالسي في مسنده ( 43/59 برقم 996 و 43/59 برقم 997 ) وعبدالرزاق في مصنفه ( 17/1528 برقم 13968 و 17/1528 برقم 13969 و 17/1529 برقم 13980 ) والحميدي في مسنده ( 0/57 برقم 399 و 0/57 برقم 400 ) وأبو القاسم البغوي في الجعديات ( 0/56 برقم 401 و 0/294 برقم 2822 ) وابن أبي شيبة في مصنفه ( 16/3012 برقم 20833 و 16/3012 برقم 20836 و 16/3013 برقم 20853 و 16/3212 برقم 21987 و 16/3240 برقم 22129 ) والحارث بن أبي أسامة في مسنده ( 11/250 برقم 429 ) وابن أبي عاصم في الآحاد والمثاني ( 0/635 برقم 1843 ) والحافظ ابن حجر في المطالب العالية ( 11/333 برقم 1440 ) والدولابي في الكنى والأسماء ( 3/201 برقم 998 ) وأبو عوانة في مستخرجه ( 17/636 برقم 4174 و 17/636 برقم 4175 و 17/636 برقم 4178 و 17/636 برقم 4179 و 17/636 برقم 4180 و 17/636 برقم 4181 و 17/636 برقم 4182 و 17/636 برقم 4183 و 17/636 برقم 4185 و 17/636 برقم 4186 و 17/637 برقم 4193 و 17/638 برقم 4208 و 17/638 برقم 4209 و 17/638 برقم 4211 و 17/638 برقم 4212 و 17/638 برقم 4213 و 17/638 برقم 4214 و 17/638 برقم 4215 و 17/638 برقم 4216 و 17/638 برقم 4227 ) والطحاوي في شرح معاني الآثار ( 19/1 برقم 3902 و 19/1 برقم 3905 و 19/1 برقم 3906 و 19/1 برقم 3908 و 19/1 برقم 3909 و 19/1 برقم 3910 و 19/1 برقم 3921 و 19/1 برقم 3922 و 19/1 برقم 3926 و 19/1 برقم 3930 ) والطحاوي في مشكل الآثار ( 0/216 برقم 2242 و 0/216 برقم 2247 و 0/216 برقم 2248 و 0/216 برقم 2255 و 0/216 برقم 2256 و 0/216 برقم 2258 ) والرامهرمزي في المحدث الفاصل بين الراوي والواعي ( 0/18 برقم 190 ) والطبراني في الكبير ( 94/256 برقم 4148 و 94/256 برقم 4149 و 94/256 برقم 4150 و 94/256 برقم 4155 و 94/256 برقم 4156 و 94/256 برقم 4158 و 94/256 برقم 4181 و 94/256 برقم 4182 و 94/256 برقم 4183 و 94/256 برقم 4184 و 94/256 برقم 4185 و 94/256 برقم 4186 و 94/256 برقم 4189 و 94/256 برقم 4191 و 94/256 برقم 4192 و 94/256 برقم 4193 و 94/256 برقم 4194 و 94/256 برقم 4196 و 94/256 برقم 4148 و 94/256 برقم 4149 و 94/256 برقم 4150 و 94/256 برقم 4155 و 94/256 برقم 4156 و 94/256 برقم 4158 و 94/256 برقم 4181 و 94/256 برقم 4182 و 94/256 برقم 4183 و 94/256 برقم 4184 و 94/256 برقم 4185 و 94/256 برقم 4186 و 94/256 برقم 4189 و 94/256 برقم 4191 و 94/256 برقم 4192 و 94/256 برقم 4193 و 94/256 برقم 4194 و 94/256 برقم 4196 و 94/256 برقم 4200 و 94/256 برقم 4207 و 94/256 برقم 4208 و 94/256 برقم 4210 و 94/256 برقم 4211 و 94/256 برقم 4212 و 94/256 برقم 4213 و 94/256 برقم 4214 و 94/256 برقم 4215 و 94/256 برقم 4216 و 94/256 برقم 4233 و 94/256 برقم 4234 و 94/256 برقم 4237 و 94/256 برقم 4239 و 94/256 برقم 4240 و 94/256 برقم 4243 و 94/256 برقم 4244 و 94/256 برقم 4245 و 94/256 برقم 4246 و 94/256 برقم 4254 و 94/256 برقم 4293 و 94/256 برقم 4310 و 94/256 برقم 4312 و 94/256 برقم 4313 و 94/256 برقم 4317 و 94/256 برقم 4320 و 94/256 برقم 4321 و 94/256 برقم 4322 ) وابن المقرئ في معجمه ( 18/40 برقم 929 ) وأبو نعيم الأصبهاني في حلية الأولياء ( 0/393 برقم 8851 ) وأبو نعيم الأصبهاني في أخبار أصبهان ( 33/18 برقم 177 ) وأبو نعيم الأصبهاني في معرفة الصحابة ( 2/1005 برقم 2352 ) والبيهقي في السنن الكبير ( 29/549 برقم 10956 و 29/550 برقم 10963 و 29/550 برقم 10965 و 29/550 برقم 10967 و 29/550 برقم 10968 و 29/550 برقم 10969 و 29/550 برقم 10970 و 29/550 برقم 10971 و 29/550 برقم 10972 و 29/551 برقم 10980 و 29/551 برقم 10988 و 29/552 برقم 10990 ) والبيهقي في السنن الصغير ( 7/293 برقم 1687 و 7/293 برقم 1688 ) والكفاية في علم الرواية للخطيب البغدادي ( 0/63 برقم 1293 )